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धर्मशाला का प्राकृतिक सौन्दर्य

डॉ० युगल गरा

वार्ड नं. 12. अमर बड़ोल पर्मशाला

धर्मशाला हमारा, कितना सुन्दर कितना प्यारा। प्रकृति ने इसे संवारा यह है स्विट्जरलैंड हमारा।

हिमाच्छादित धौलाधार के सुरम्य आचल में अवस्थित धर्मशाला अपनी प्राकृतिक आमा और नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए विश्वविख्यात है। ऐसा आमासित होता है कि प्रकृति नटी ने दिल खोल कर अपनी सारी सुन्दरता इस क्षेत्र को प्रदान की है। मान्यता है कि धर्मशाला का संबंध धर्मकोट से है जिसे राजा धर्मचन्द ने बसाया था। स्वच्छ पर्यावरण, जलवायु एवं प्राकृतिक सुन्दरता कारण धर्मशाला में जो आया, वह यहीं का होकर रह गया। यही कारण है कि यहाँ बाहर से बसने वाले लोगों की संख्या उत्तरोतर बढ़ रही है। यहाँ की सुन्दरता और मनोहारी दृश्यावली पर कायल होकर भारत के ब्रिटिश वायसराय लार्ड एल्गिन ने धर्मशाला की तुलना स्कॉटलैंड से की थी। समुद्रतल से यहाँ की ऊंचाई 1250 मी और 2000 मी. के बीच है। धर्मशाला दो शब्दों के मेल से बना है. धर्म और शाला अर्थात् धार्मिक तीर्थ यात्रियों के लिए विश्राम गृह अंग्रेजों को यह स्थान बहुत भाया। यही कारण है कि 1855 में जिला कांगड़ा का मुख्यालय नगरकोट (कांगड़ा) से बदल कर धर्मशाला बना। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 6 मई 1867 को धर्मशाला शहर को नगरपालिका का दर्जा दिया। इस शहर का विकारा यहीं नहीं रुका। सितम्बर 2015 में इसे नगर निगम बना दिया गया जो अपने आप में एक मील का पत्थर है। नगर निगम बनने के साथ ही इसे स्मार्ट सिटी का दर्जा भी प्राप्त हुआ है जो इसके निरन्तर विकास को द्योतक है।

खेल नगरी से जाना जाने वाला धर्मशाला जो हिमाचल प्रदेश के अग्रणी जिला कांगडा का मुख्यालय है, अपने बीच एक सुदीर्घ राजनीतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक परम्परा संजोए हुए हैं। यह एक ऐसा पर्यटन स्थल बन गया है जहाँ हजारों की संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य से अभिभूत आनन्द व शांति प्राप्त करने के लिए आते है। वैसे भी स्वामी विवेकानन्द जी के एक सप्ताह से अधिक यहां समय बिताने तथा समाज सुधारक मास्टर मित्रसेन का गृह क्षेत्र होने से इस पर्यटन नगरी का गौरव बढ़ा है। धर्मशाला इस समय विश्व के मानचित्र पर उभर कर सामने आ गया है क्योंकि तिब्बतियों के

सर्वोच्च धार्मिक गुरू महामहिम दलाई लामा जो बौद्ध धर्म के 14 वे दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो है,

उन्होंने अपना अस्थाई मुख्यालय ऊपरी धर्मशाला (नकलोड गंज) में ही बनाया है जिसे छोटा तिब्बत कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मैकलोडगंज का नाम तत्कालीन लेफ्टीनेंट गवर्नर सर डोनाल्ड मक्लोड के नाम पर पड़ा है। निर्वासित सिद्धत सरकार का मुख्यालय होने के कारण यहां तिब्बत को चीन के क्रूर पंजों से छुड़ाने के लिए तिब्बती समुदाय यदा-कदा संघर्ष करता रहता है। यहां छोटे-बड़े कई दर्शनीय स्थल है जो पर्यटको को बरबस आकर्षित करते हैं। महामहिम दलाईलामा का मंदिर बौद्ध आस्था का प्रतीक है जिसे देखने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। इसी प्रकार डल झील प्राचीन गिरिजाघर, भागसूनाग जलस्रोत आदि बहुत सुन्दर स्थान है। धर्मकोट में दिपश्यना साधना स्थल है। जहाँ शांति प्राप्ति हेतु साधक आते हैं। ऊँचे-ऊच विशालकाय देवदार के वृक्षों के बीच स्थित यह आअम निस्संदेह आत्मिक शांति प्रदान करने वाला है। धर्मकोट से ही आगे 10 किमी0 की दूरी पर बिलकुल के पहाड़ से सटा अति सुन्दर व रमणीय स्थल है त्रियुद्ध जो समुद्रतल से 2975 मी0 पर है। पर्वतारोहण के लिए यह उत्तम स्थान है। यहीं से बर्फ के पहाड़ शुरू होते हैं। यहाँ पहुंच कर ऐसा प्रतीत होता है कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। ऐसा अदभुत प्राकृतिक दृश्य। ऐसा विलक्षण नजारा! ऐसी अद्वितीय आना। ऐसी अलौकिक छटा । ऐसी आध्यात्मिक अनुभूति! कौन होगा जो इससे अभिभूत नहीं होगा ? इस नैसर्गिक सौन्दर्य का पान करने के लिए लालायित नहीं होगा ? यहाँ पहुँच कर कामायनी के चिन्ता सर्ग की प्रारंभिक पंक्तियाँ उद्धृत करना अप्रासंगिक नहीं होगा

              “हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर 

                       बैठ शिला की शीतल छाँह

               एक पुरुष नीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह।

                       नीचे जल था, ऊपर हिम था. सघन ।

               एक तरल था एक एक तत्व की ही प्रधानता,

                      कहो उसे जड़ या चेतन।

                दूर-दूर तक विस्तृत था हिम. स्तब्ध उसी के हृदय समान

                      नीरवता सी शिला चरण से

                टकराता फिरता पवमानः ।

मैक्लोडगंज में तिब्बती निर्वासित सरकार और तिब्बती लोगों के बसने के कारण यह तिब्बती अस्कृति और कला का मुख्य केन्द्र बन गया है। यहाँ तिब्बती अध्ययन स्कूल तथा तिब्बती कला एवं शिल्प संस्थान भी हैं, जहां इनके बच्चे स्कूल शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण भी प्रत करते हैं। नीरबूलिंगा में तिब्बत की मशहूर चित्रकला थंका पेंटिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। धर्मशाला से दो किलोमीटर की दूरी पर ऊंची पहाड़ी पर स्थित प्राचीनतम इन्द्रनाग का मन्दि है जो वर्षा का देवता माना जाता है। अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों स्थितियों में इस देवता की की जाती है। किसी विवाह-शादी या समारोह में वर्षा का प्रकोप न हो, इसके लिए उस मंदिर में जाक आराधना-अर्चना की जाती है। अब इस ऊँचे स्थान से पैराग्लाईडिंग भी शुरू की गई है जो सैलानिय के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इसी प्रकार कई और दर्शनीय स्थल हैं जो ऐतिहासिक होने के साथ-साथ आत्मिक शांति भी प्रदान करते हैं। इनमें चिन्मय तपोवन आश्रम, कुनाल पत्थरी मन्दिर, तिब्बती कराया मठ, ओशो आश्रम अर्धजर महादेव आदि प्रमुख है। ‘नहीं’ का सनसेट प्वाईट अपने आप में अलग दृश्य प्रस्तुत करता है। पास के गांव तलन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सहज पब्लिक स्कूल है जहाँ विदेशी छात्र भारतीय संस्कृति के अनुरूप शिक्षा ग्रहण करते हैं।

शहर के बीच निर्मित ‘शहीद स्मारक और युद्ध संग्रहालय उन वीर योद्धाओं के शौर्य और बलिदान का द्योतक है, जिन सैनिकों ने देश की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी। इन अमर वी का नाम यहां अंकित है जो हमारे लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत है इसी प्रकार दाड़ी में शहीद वाटिका है जहां अमर शहीद मेजर दुर्गामल्ल और कैप्टन दल बहादुर थापा की मूर्तियां स्थापित की गई है। इन दोनों योद्धाओं को अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई थी।

धर्मशाला खेल नगरी के नाम से भी विख्यात है। यहाँ अति सुन्दर क्रिकेट स्टेडियम है जो बरबस ही देशी-विदेशी खिलाड़ियों और क्रिकेट प्रेमियों को आकर्षित करता है। विदेशी खिलाड़ी भी मुक्त कं से इसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। इसी स्टेडियम के साथ एक सिंथेटिक ट्रैक है और दूसरी अन्य खेलों के लिए इन्डोर स्टेडियम भी है जहां विभिन्न क्रीडाओं में रुचि रखने वाले युवा खिलाड़ी अभ्यास करते

है और समय-समय पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज करते हैं। धर्मशाला की आबादी नगर निगम बनने के बाद करीब 55000 है. इसका क्षेत्रफल 276 वर्ग किलोमीटर तथा 17 चार्ज है। यहाँ विभिन्न जातियों, धर्मों व सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं. इनमें गद्दी, गोरखा तिब्बती विशेष उल्लेखनीय है। स्थानीय गद्दी व गोरखा लोग हिन्दू है नही जाति के लोग बहुसंख्यक हैं। मूलतः ये भरमौर क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं और वहां से आकर यहां बसे हैं ये लोग अपनी गद्द्याली बोली और अपने धार्मिक व सांस्कृतिक रीति-रिवाजों को भूले नहीं है तथा उन्हीं का पालन करते हैं। घरों में अपनी बोली में बात करते हैं। इसी प्रकार गोरखा समुदाय भी आपस में गोरखाली (नेपाली) में बाते करते हैं ये सभी परम्परागत तीज-त्यौहार बड़े उल्लास और उत्साह से मनाते हैं।

सारांशतः यह आकट्य सत्य है कि धर्मशाला का प्राकृतिक सौन्दर्य अनिर्वचनीय आनन्द की अनुभूति कराता है। ऐसा आभासित होता है कि प्रकृति नटी ने अपना समूचा वैभव, अपना अनूठा लावण्य अपनी सारी मनोहरता इसी शस्य श्यामला घाटी में लुटा दी हो। इसलिए यदि धर्मशाला की तुलना स्वर्ग से की जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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